पहले मुझे निश्चित रुप से तय कर लेना चाहिए कि ये मेरे परमेश्वर हैं और मैं उनका हूं। ये मेरा कल्याण करने के लिए ही हैं और मैं अपना कल्याण करवाने ही वाला हूं।
कोई चीज मुझे यदि किसी से किसी कारणवश मुफ्त में मिल गयी और मैं उसे लेने से इनकार नहीं कर सकता हूं, तो उस चीज के जितना मूल्य या उन मूल्यों के जितने परिश्रम मुझे परमेश्वर के चरणों में अर्पण करने आना चाहिए।
श्रम और धन दोनों का उचित उपयोग करना सिखो। किसी से भी चाहे श्रम के मामले में हो या धन के मामले में, कोई भी चीज मुफ्त में कभी भी मत लेना। ऐसा करना हमारे लिए सदा घातक ही साबित होता है।