यदि अन्याय का प्रतिकार करना हो तो, इसके लिए पहले मन, शरीर एवं बुद्धि से हमें समर्थ बनना चाहिए

भगवान का नामस्मरण कैसे करना चाहिए, और संकटों का सामना किस तरह करना चाहिए

मैं संकट में से बाहर आ गया हूँ’ यह भावना मन में जिस पल उत्पन्न होती है

परमेश्वर ने हर किसी को समान रूप में स्थिरता दी होती है

मेरा आहार, विहार, आचार, विचार कैसा है इस पर ही परमेश्वर की मुझ पर होने वाली कृपा निर्भर करती है

मेरा विश्व अर्थात मेरे अनेक जन्मों का प्रारब्ध

जीवन में हुई गलतियों पर मन:पूर्वक गौर करके उन्हें सुधारने के दृढ़ निश्चय का मार्ग अर्थात प्रायश्चित

परमेश्वर, सद्गुरु के प्रति मेरे मन में होनेवाला धाक, आदरयुक्त भय

भक्त चाहे कुछ भी और कितना भी क्यों न माँग ले, मगर वह यदि उसके लिए अनुचित है

मातृभूमि के लिए शहिद होनेवाले सैनिकों का शव यह अपने घर के व्यक्ति का ही है
