परिपुर्णता एक भ्रम है। उसे भूल जाओ। केवल भगवान ही परिपुर्ण हैं

अहंकार आपको यह सोचने पर मजबूर करता है कि आप भगवान से भी बढकर हैं।

वह ही (स्वयंभगवान) एकमेव त्राता है यही सर्वोच्च श्रद्धा और यही सर्वोच्च विश्वास है।

अपेक्षा रखनी ही हो तो वह केवल चण्डिकाकुल से और स्वयं से

चिन्ता करने से क्या सहायता मिलनेवाली है?

जितने प्रमाण में ‘सद्गुरु रखवाला है’ यह विश्वास; उतने ही प्रमाण में आत्मविश्वास।

पहले मुझे निश्चित रुप से तय कर लेना चाहिए कि ये मेरे परमेश्वर हैं और मैं उनका हूं।

कोई चीज मुझे यदि किसी से किसी कारणवश मुफ्त में मिल गयी और मैं उसे लेने से इनकार नहीं कर सकता हूं

जिसमें देने की प्रवृत्ति होती है, उसे ही भगवान देते रहते हैं। जिसमें लोगों को लूटने की प्रवृत्ति होती है

जीवन में परमेश्वर से यदि कुछ मांगना ही है तो वह अवश्य मांगिए
