मन एवं बुद्धि जहाँ पर एकत्रित कार्य करते हैं ऐसा स्थान अर्थात अंत:करण

अपने मन को शांत, एकचित्त करना और साथ ही जिस में से मांगल्य उत्पन्न होगा

यदि मैं नामस्मरण के अर्थात भक्ति के और गरीब, अनाथ, जरूरतमंदों की सेवा

परमेश्वर और उनके भक्तों मे बीच कोई भी एजंट नहीं होता

परमेश्वर जिसे नहीं जानते, ऐसी कोई भी बात नहीं होती

संकट की घडियों में परमेश्वर ने किस तरह मेरा साथ दिया और इसी कारण मेरा सब कुछ अच्छा कैसे हुआ

मन में भक्तिभाव न होते हुए, केवल हाथों से मेरे द्वारा की जानेवाली कर्मकांड की कवायद मेरे परमेश्वर तक कभी नहीं पहुँचती

अपने जीवन में दुख का कारण अभाव ही होता है

मुझे परमेश्वर के बहुत ही करीब जाना है ऐसा केवल मैं कहते रहता हूँ

जब मैं परमेश्वर के साथ पूरी तरह सच्चाई से पेश आने लगता हूँ
