जितने प्रमाण में भक्ति, उतने ही प्रमाण में शांति, और जितने प्रमाण में शांतता उतने ही प्रमाण में स्थिरता, उतने ही प्रमाण में परमेश्वरी कृपा; अर्थात जितने प्रमाण में भक्ति, उतने ही प्रमाण में परमेश्वरी कृपा।
मेरे बाह्य मन पर परमेश्वर का शासन जो ठीक से चलने देता है वह हिस्सा यानी परमेश्वरी मन। जितने प्रमाण में परमेश्वरी मन मेरे जीवन में विकसित होता है, उतने ही प्रमाण में मेरे जीवन में परमेश्वरी कृपा मुझे प्राप्त होती है।