कुछ लोग यदि थोडा सा भी संकट आ जाता है तो घबरा जाते हैं, वहीं, कुछ लोग चाहें कितना भी बड़ा संकट क्यों न आ जाये, उसका सामना करते हैं; संकटों में बिना डगमगाये, बिना डरे, बिना झुके, बिना टूटे उनका सामना करने वाले ये लोग अर्थात भक्त।
परमेश्वर और उनके भक्तों मे बीच कोई भी एजंट नहीं होता। हर किसी की कतार परमात्मा के पास, सद्गुरु के पास अलग-अलग ही होती है। मुझे किसी अन्य की कतार में घुसना नहीं है और कोई और मेरी कतार में घुस नही सकता है। मेरे लिए जो कुछ भी करना है, वह परमात्मा ही कर सकते हैं।
भक्त चाहे कुछ भी और कितना भी क्यों न माँग ले, मगर वह यदि उसके लिए अनुचित है, तो परमात्मा, सद्गुरु या सद्गुरुतत्त्व अपने उस भक्त को वह कभी भी नहीं देते।