मन एवं बुद्धि जहाँ पर एकत्रित कार्य करते हैं ऐसा स्थान अर्थात अंत:करण। यही मनुष्य की सबसे बड़ी दौलत है क्योंकि अंत:करण ही मनुष्य को संपूर्ण शक्ति, सामर्थ्य दे सकता है।
जीवन में हुई गलतियों पर मन:पूर्वक गौर करके उन्हें सुधारने के दृढ़ निश्चय का मार्ग अर्थात प्रायश्चित। मन, बुद्धि और कृति इन तीनों का भी शुद्धीकरण अर्थात प्रायश्चित।