जीवन में परमेश्वर से यदि कुछ मांगना ही है तो वह अवश्य मांगिए, लेकिन यह मांगना मत भूलिए कि हे परमेश्वर, मैं तुम्हें चाहता हूं, बाकी का जो कुछ भी देना है वह अवश्य दो, लेकिन एक बात निश्चित रुप से मांग रहा हूं कि.... मैं तुम्हें ही चाहता हूं।
स्वयं को विशिष्ट क्रम से बांधे रखने को अनुशासन कहते हैं। जिस जीवन में अनुशासन नहीं होता, उस जीवन का विकास नहीं होता। जिस कार्य में अनुशासन नहीं होता, उस कार्य का भी विकास नहीं होता।