जितने प्रमाण में भक्ति, उतने ही प्रमाण में शांति, और जितने प्रमाण में शांतता

मेरे बाह्य मन पर परमेश्वर का शासन जो ठीक से चलने देता है वह हिस्सा यानी परमेश्वरी मन।

मेरा आहार, विहार, आचार, विचार कैसा है इस पर ही परमेश्वर की मुझ पर होने वाली कृपा निर्भर करती है

परमेश्वरी इच्छा, नियम एवं कृपा इनमें से हमें केवल कृपा ही चाहिए होती है
