पहले मुझे निश्चित रुप से तय कर लेना चाहिए कि ये मेरे परमेश्वर हैं और मैं उनका हूं।

जीवन में परमेश्वर से यदि कुछ मांगना ही है तो वह अवश्य मांगिए

कृतज्ञता यह ऐसा गुणधर्म है, जो परमेश्वर को सब से अधिक पसंद है।

अच्छा या बुरा कार्य करने की शक्ति मेरी सावधानता पर निर्भर करती है

जब परमेश्वर के प्रति मेरे मन में होनेवाला भय दूर होगा, तब मैं परमेश्वर के साथ सही मायने में जुड जाऊँगा

मेरे बाह्य मन पर परमेश्वर का शासन जो ठीक से चलने देता है वह हिस्सा यानी परमेश्वरी मन।

परमेश्वर और उनके भक्तों मे बीच कोई भी एजंट नहीं होता

परमेश्वर जिसे नहीं जानते, ऐसी कोई भी बात नहीं होती

संकट की घडियों में परमेश्वर ने किस तरह मेरा साथ दिया और इसी कारण मेरा सब कुछ अच्छा कैसे हुआ

मन में भक्तिभाव न होते हुए, केवल हाथों से मेरे द्वारा की जानेवाली कर्मकांड की कवायद मेरे परमेश्वर तक कभी नहीं पहुँचती
