परमेश्वर और उनके भक्तों मे बीच कोई भी एजंट नहीं होता

जब मैं परमेश्वर के साथ पूरी तरह सच्चाई से पेश आने लगता हूँ

परमेश्वर, सद्गुरु के प्रति मेरे मन में होनेवाला धाक, आदरयुक्त भय

भक्त चाहे कुछ भी और कितना भी क्यों न माँग ले, मगर वह यदि उसके लिए अनुचित है

मैं यदि मन:पूर्वक सेवा करने का प्रयास करता हूँ तो

परमात्मा / परमेश्वर / सद्गुरु मेरे जीवन में यदि वास्तव में शासनकर्ता बनकर रहें
