जब तक मैं प्रेम करने की कला नहीं सीखता हूँ, तब तक जो प्रेम का महासागर है और सत्य, प्रेम एवं आनंद ये ही केवल जिसके गुण हैं, उस गुरुतत्त्व / सद्गुरुतत्त्व को मैं पहचान ही नहीं सकता।
भक्त चाहे कुछ भी और कितना भी क्यों न माँग ले, मगर वह यदि उसके लिए अनुचित है, तो परमात्मा, सद्गुरु या सद्गुरुतत्त्व अपने उस भक्त को वह कभी भी नहीं देते।